[प्राचीन इतिहास - लेख]*अध्याय 11. गुप्त साम्राज्य

 

    [प्राचीन इतिहास - लेख]*अध्याय 11. गुप्त साम्राज्य


परिचय 

प्राचीन भारत के सबसे प्रभावशाली और समृद्ध राजवंशों में से एक गुप्त साम्राज्य ने तीसरी शताब्दी के अंत से छठी शताब्दी की शुरुआत तक उपमहाद्वीप के उत्तरी और मध्य भाग पर शासन किया। श्री गुप्त द्वारा स्थापित यह साम्राज्य चंद्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल में अपने चरम पर पहुंच गया, जिन्हें अक्सर "भारतीय ऑगस्टस" के रूप में जाना जाता है।


गुप्त साम्राज्य भारतीय संस्कृति, कला, साहित्य और विज्ञान में अपने महत्वपूर्ण योगदान के लिए प्रसिद्ध है। इस अवधि के दौरान, भारत ने खगोल विज्ञान, गणित, चिकित्सा और दर्शन जैसे क्षेत्रों में उन्नति के साथ बौद्धिक और कलात्मक खोजों का स्वर्ण युग देखा। गुप्त युग में मूर्तिकला, चित्रकला और वास्तुकला में विशिष्ट शैलियों के विकास के साथ शास्त्रीय भारतीय कला का उत्कर्ष भी देखा गया।


इस उत्तर में, हम गुप्त साम्राज्य के प्रमुख पहलुओं का पता लगाएंगे, जिसमें इसका उदय, इसके सबसे उल्लेखनीय शासक, इसकी सांस्कृतिक उपलब्धियां और अंततः इसका पतन शामिल है।



[प्राचीन इतिहास - लेख]*अध्याय 11. गुप्त साम्राज्य




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निष्कर्ष 

सांस्कृतिक और बौद्धिक उत्कृष्टता के प्रतीक गुप्त साम्राज्य ने भारतीय इतिहास पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है। इसके स्वर्ण युग में कला, साहित्य, विज्ञान और दर्शन में उल्लेखनीय प्रगति हुई। कालिदास की कृतियों और नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना के उदाहरण के रूप में इस साम्राज्य की विरासत भारत की सांस्कृतिक विरासत को प्रेरित और प्रभावित करती रही है।


हालाँकि गुप्त साम्राज्य का पतन आंतरिक कमज़ोरियों और बाहरी खतरों के कारण हुआ, लेकिन भारतीय सभ्यता में इसका स्थायी योगदान इसकी महानता का प्रमाण है। गुप्त काल भारत के समृद्ध और विविध सांस्कृतिक परिदृश्य को आकार देने में साम्राज्य की महत्वपूर्ण भूमिका की याद दिलाता है।


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